घीसू और माधव जो कोई भी काम करने से घबराते हैं, उन्होंने गरीबी को अपने जीवन की सच्चाई मान लिया है जिसके लिये वो कुछ नहीं करना चाहते| पर क्या यह सच्चाई इन दोनों पर इतनी हावी हो जाती है की माधव को अपनी पत्नी का प्रसव पीड़ा में मरना नहीं दिखता | और जब वो मर जाती है तो क्या उसके लिये एक कफ़न का इंतज़ाम करना भी उन्हें भारी लगता है | सुनिए मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी द्वारा लिखी कफ़न (Kafan) समाज की एक कड़वी सच्चाई का आईना दिखाती कहानी |