
अनकही कहानियां २०२१ की शॉर्टलिस्टेड कहानियों में अपनी जगह बनाने के लिये सभी लेखकों को बहुत बहुत बधाई | प्रतियोगिता के विजेता 30 अक्टूबर – 6 बजे Indipodcaster FB page पर घोषित किये जाएंगे| (https://www.facebook.com/IndipodcasterNetwork)
इस प्रतियोगिता को ख़ास बनाने के लिये आप सबका तहे दिल से धन्यवाद |
Nilin Dixit – अनामिका
Love is about feeling for a person not just about his presence
Vaishnavi Pandey – अम्मा के ‘प्रियतम’
The story sketches out the character of an elderly woman addressed as ‘Amma’ and her devotional bond with the ‘Eternal Flute Player’,that reaches a devotionaly interrogative end, enticing the reader with in its fragments.
Deepti Mittal – खुले रखना दरवाजे
Emotional drama of two neighbours.
Dr. Jaya Anand – पीर सही न जाए
एक स्त्री के दृष्टिकोण की कहानी जो दूसरी स्त्री की पीड़ा को समझ सकती हैं लेकिन उसका दृष्टिकोण कई बार पूर्वाग्रह से ग्रस्त होता है। एक सुन्दर प्यारी लडकी के बेडौल, विशालकाय पति को देखकर प्रिया के मन क्या उथल-पुथल मचती है और कहानी की परिणति किस रूप मे होती है इसे जानने के लिए ‘पीर सही न जाए ‘कहानी पढ़ें। य़ह कहानी हास्य व्यंग्य श्रेणी मे आएगी।
Pallavi Amit – नखरीली नींद
ये कहानी है एक ऐसी स्त्री की जो पति के गुस्से से परेशानहै। अपने बेटे को पति जैसा नही बनाना चाहती है पर बेटा समय के साथ पिता सा हो जाता है। तब ये स्त्री बेटे का नही बहू का साथ देती है।
Poonam Ahmed – डर
आजकल के माहौल से डरा हुआ एक मुस्लिम व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ ट्रेन में सफर करता है, रास्ते भर वह अपने दो सहयात्रियों से मन ही मन बहुत डरा रहता है। रास्ते भर सहयात्रियों के व्यवहार से यह डर ट्रेन से उतरकर एक पल में खत्म हो जाता है।
Anupam Chitkara – दीपमणि
मानव तस्करी, बहुपति जैसी कुप्रथा के बीच पनपनी प्रेम कहानी
Rohan Kanungo – घड़ी वाले दादा
९० का दशक भारत के समाज के लिए एक अभूतपूर्व समय था। बदलाव की जो गति इस दौर में देखी गयी वो शायद ही आज़ाद भारत में पहले अनुभव की हो। दशकों से जो ढर्रा चल रहा था, इस दशक ने उसे पूरी तरह से बदल दिया। यह समय भारत के सामाजिक ढाँचे के लिए एक संधि काल की तरह था। और हर संधि काल अपने साथ एक पीड़ा, एक असहजता ले कर आता है। इस काल के बीत जाने पर अधिकांश लोग उस पीड़ा को शायद भूल जाते हैं, पर क्या इस पीड़ा को अपने जीवन के आख़िरी दिनों में जीने वाले इस पीड़ा से कभी उबर पातें हैं? ‘घड़ी वाले दादा’ इस संधि काल पर लिखी मेरी लघु कथाओं की श्रिंखला में से एक ऐसी ही कहानी जो इन सवालों से जूझती है।
Dr Lokendra Singh Kot – तुरपाई
एक कस्बे की कहानी। प्रेम है, जीवन है, जीवंतता है, रक्षक हैं, भक्षक हैं। पुरानी कला है, नवीन परिवर्तन है, संघर्ष है। अंत में जीवन गहराई से समझ आता है।